कन्नड़ विकास प्राधिकरण (केडीए) ने कर्नाटक सरकार से अनुरोध किया है कि वह सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों को अंग्रेजी के बजाय कन्नड़ में दवा लिखने के लिए बाध्य करे। इस अपील का उद्देश्य स्थानीय भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना और कन्नड़ की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना है। केडीए के अध्यक्ष पुरुषोत्तम बिलिमल ने यह बात कही। अनुरोध उन्होंने कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव को एक औपचारिक पत्र लिखा।
नुस्खों में कन्नड़ को बढ़ावा
अपने पत्र में बिलिमल ने इस बात पर जोर दिया कि कर्नाटक भर के स्वास्थ्य केंद्रों, तालुकों और जिला अस्पतालों में काम करने वाले सरकारी डॉक्टरों को कन्नड़ में नुस्खे लिखने को प्राथमिकता देनी चाहिए। यह कन्नड़ भाषा को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। उन्होंने उल्लेख किया कि रायचूर के एक सरकारी अस्पताल के हालिया दौरे ने डॉक्टरों को कन्नड़ में नुस्खे लिखना शुरू करने के लिए प्रेरित किया। बिलिमल ने दावा किया कि सकारात्मक मीडिया कवरेज को देखने के बाद सैकड़ों डॉक्टरों ने स्वेच्छा से अपने नुस्खों में कन्नड़ अपनाने की इच्छा व्यक्त की है।
कर्नाटक सरकार से सहायता
यह अनुरोध कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पिछले बयानों से मेल खाता है, जिन्होंने राज्य में “कन्नड़ माहौल” बनाने का आह्वान किया है। मुख्यमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि कर्नाटक में कन्नड़ बोलने से उसके नागरिकों में गर्व की भावना पैदा होनी चाहिए। उन्होंने स्थानीय लोगों से भाषा को संरक्षित करने के व्यापक प्रयास के तहत साथी निवासियों के साथ कन्नड़ में संवाद करने का भी आग्रह किया है।
भाषा संवर्धन के लिए कानूनी संशोधन
इस साल की शुरुआत में कर्नाटक सरकार ने कन्नड़ भाषा समग्र विकास अधिनियम, 2022 में संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश पारित किया था। इस संशोधन के अनुसार राज्य में साइनबोर्ड पर 60% स्थान कन्नड़ भाषा में होना चाहिए, जबकि शेष 40% स्थान अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं के लिए छोड़ा जाना चाहिए। कन्नड़ के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयास विभिन्न क्षेत्रों में स्पष्ट रहे हैं, और केडीए का नवीनतम प्रस्ताव इस पहल को और मजबूत करता है।
निष्कर्ष
अगर कन्नड़ में नुस्खे लिखने का केडीए का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो इससे कर्नाटक में स्वास्थ्य सेवा संचार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। इसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में स्थानीय भाषा की प्रासंगिकता बढ़ाने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो राज्य के सांस्कृतिक और पेशेवर परिदृश्य में कन्नड़ के महत्व को मजबूत करता है।