मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम की नीलामी के बजाय उसे आवंटित करने के दूरसंचार नियामक ट्राई के फैसले को चुनौती दे रही है। इससे एलोन मस्क के स्टारलिंक के साथ इसकी प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है, जो प्रशासनिक आवंटन का समर्थन करती है। यह असहमति इस बात पर केंद्रित है कि भारत में होम ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए सैटेलाइट स्पेक्ट्रम कैसे वितरित किया जाना चाहिए।
नीलामी या आवंटन?
यह मुद्दा भारतीय कानून की अलग-अलग व्याख्याओं से उपजा है। रिलायंस तर्क कि मौजूदा प्रणाली स्टारलिंक जैसे विदेशी खिलाड़ियों के पक्ष में अनुचित आवंटन प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करती है, जो भारत के बाजार में प्रवेश करने के इच्छुक हैं। स्टारलिंक और अमेज़ॅन के प्रोजेक्ट कुइपर जैसे वैश्विक साथी प्रशासनिक आवंटन का समर्थन करते हैं, जबकि रिलायंस का मानना है कि निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी बाजार सुनिश्चित करने के लिए नीलामी आवश्यक है।
ट्राई का रुख और सार्वजनिक परामर्श
ट्राई ने इस मुद्दे पर एक सार्वजनिक परामर्श शुरू किया है, लेकिन रिलायंस ने 10 अक्टूबर को एक निजी पत्र में इस प्रक्रिया की आलोचना करते हुए दावा किया कि नियामक ने समय से पहले निष्कर्ष निकाला है कि आवंटन उचित मार्ग है। रिलायंस का कहना है कि ट्राई ने इस फैसले को सही ठहराने के लिए पर्याप्त अध्ययन नहीं किया है और वह प्रक्रिया को फिर से शुरू करना चाहता है।
एक बढ़ता हुआ बाज़ार
डेलॉइट के अनुसार, भारत का सैटेलाइट ब्रॉडबैंड बाजार सालाना 36% की दर से बढ़ने वाला है, जो 2030 तक 1.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। इस क्षेत्र में टेस्ला के एलोन मस्क सहित वैश्विक खिलाड़ियों की रुचि देखी जा रही है, जिनका लक्ष्य स्टारलिंक को भारत में लाना है। स्टारलिंक का तर्क है कि प्रशासनिक आवंटन वैश्विक रुझानों के अनुरूप है, लेकिन रिलायंस का कहना है कि घरेलू खिलाड़ियों की सुरक्षा और समान अवसर बनाने के लिए नीलामी आवश्यक है।
भारत के दूरसंचार उद्योग के लिए निहितार्थ
इस विवाद का नतीजा भारत के सैटेलाइट ब्रॉडबैंड बाजार के भविष्य को आकार दे सकता है। यदि आवंटन आगे बढ़ता है, तो स्टारलिंक जैसे विदेशी खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिल सकता है, जो संभावित रूप से पारंपरिक दूरसंचार कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाली आवाज और डेटा सेवाएं प्रदान कर सकते हैं। हालाँकि, एक नीलामी प्रक्रिया एक अधिक संतुलित बाजार सुनिश्चित कर सकती है, जिससे रिलायंस जियो जैसी भारतीय कंपनियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के खिलाफ बेहतर स्थिति मिल सकेगी।