इस प्रकार आस-पास सभी गांव देवी – देवता को आमंत्रण किया जाता है। Chhattisgarh Hinglaj Mata इस गांव मुरिया, धुरवा, रावत, लौहार, माड़िया जाति के परिवार निवासरत हैं। सभी वर्ग के लोग इस देवी को मनते है। मुख्य पुजारी समदू पिता बुटू उसके मृत्यु के बड़े पुत्र – महादेव पिता समदू थे, वर्तमान में महादेव के पुत्र – कुरसो मोर्य पुजारी हैं। इस देवगुड़ी बाजार – मेला के अलावा हर वर्ष – अमूस त्यौहार, नवाखानी, दियारी त्यौहार, आमाकानी, त्यौहार मनाया जाता है। हर त्यौहार दिन – बुधवार को होता है। पुजा- पाठ से गांव के सभी वर्ग परिवार खुशहाली जीवन यापन कर रहे हैं।

Chhattisgarh Hinglaj Mata Darba story
दरभा विकास खण्ड के सुदुर दक्षिणी क्षेत्र में स्थित जंगलों से गिरा ग्राम है कोलेंगा। यहां मुख्य रूप से धुरवा जनजाति के लोग निवास करते हैं इस गांव के बसाहट के समय से ही यहां कि मुख्य देवी बास्ताबुंदीन के नाम से विख्यात है। बुजुर्गों का कहना है कि इस गांव को बसाते समय जब माटी आया को अनुमति मांग रहे थे तब वहां एक बांस का पेड़ प्रकट हुआ तथा वहीं से एक शीला के रूप में देवी बास्ताबुंदीन प्रकट हुई तथा इसी दिन से देवी की पुजा अर्चना किया जाता है। यहां प्रत्येक वर्ष अप्रैल माह में तीन दिन का मेला होता है । इस गुड़ी में वर्तमान में अर्जुन सिराह है यहां तीन देवता भी स्थापित हैं हिंगलाजीन आया, परदेशीन आया तथा भैरम ढोकरा । यहां के अप्रैल माह में आयोजित होने वाले मेले में आस-पास के १६ ग्रामों के देवी-देवता आंमत्रित किये जाते हैं। बस्तर दशहरा में बास्ताबुंदीन गुड़ी से देवी को छत्र के रूप में ले जाया जाता है।
प्राकृतिक सुन्दर पहाड़ियों के बीच बसे ग्राम चन्द्रगिरी की प्रमुख देवी है माता गंगादई । गंगादई को सतयुग में राजा चन्द्रसाय वारंगल आन्ध्रप्रदेश से लाकर ग्राम में स्थापित किया जिसके प्रथम माटी पुजारी स्वयं राजा चन्द्रसाय थे। राजा चन्द्रसाय के दो ओर भाई तिरथसाय व कटकसाय । चन्द्रसाय के पश्चात वंश के समाप्त होने के पश्चात कई वर्षों तक गुड़ी में कोई पुजा-पाठ नहीं हुआ तत्पश्चात आपसी सलाह मशवरा से धाकड़ जाति के चुड़ा सिंह धाकड़ को माटी पुजारी नियुक्त किया गया। जिसके वंशज मुकुन्द्रसिंह धाकड़ वर्तमान में माटी पुजारी हैं। देवी को हर त्यौहार में लाल रंग के बकरे की बली दी जाती है तथा प्रत्येक तीन वर्ष में मड़ई मेला का आयोजन किया जाता है। यह गुड़ी चितापुर परगना अन्तर्गत आता है। गंगादई माता की सवारी हाथी है इसके साथ विराजे बैंरम बाबा को सफेद बकरी दी जाती है। जिनकी सवारी सफेद घोड़ा है।

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हिंगलाजीन माता को भारत देश के आजादी के बाद कीड़ा धुरवा परिवार के द्वारा चितापुर टिकरीगुड़ी के एक पेड़ के नीचे स्थापित किया गया था। इस परिवार के बड़े बुजुर्गों के मृत्यु के पश्चात इनके वंशजों के द्वारा पुजा-पाठ किया जाता है। तथा बली के रूप में काला बकरा, सुअर तथा बकरी दिया जाता है । हिंगलाजीन माता के दस बहने हैं :- १. भंडारीन माता, २. सोनादई माता, ३. मावलीमाता, ४. मतनदई माता, ५ . दुलारदई माता, ६. सोहरापालीन माता, ७. जलनीमाता, ८. कनकदई माता, ६. लाडरीमाता, १०. लोहराजिन परदेशीन माता।
ग्राम पंचायत बीसपुर के धुरवा पारा में जलनीमाता देवगुड़ी स्थित है। सर्व प्रथम ग्राम टाहकवाड़ा से पांच पीढी पूर्व भादू पुजारी के द्वारा जलनी माता को लाकर जंगल में स्थापित किया गया जिसके आस-पास ग्राम बीसपुर की बसाहट शुरू हुई । महामारी इत्यादि के रोकथाम में सेंदरी माता के प्रकोप के समय मात्र दो समय धुप की आरती करके तीन दिन के बाद हल्दी पानी के साथ नहाने से सेंदरी माता का प्रकोप समाप्त होने का दावा पुजारी के द्वारा किया गया। देवी की विशेष पुजा अर्चना वर्ष में पांच बार आयोजित किया जाता है। तथा देवी को पशुओं आदि के महामारी में भी पुजा जाता है।
Chhattisgarh Hinglaj Mata Story Part – 1

माता की संक्षिप्त जानकारी :- कोदई माता, शीतला माता, देवी दंतेश्वरी माई के साथ में वारंगाल से
आकर ग्राम ढोढ़रेपाल में स्थापित हुई है। गाँव के लोग हल्बा जाति के लोगों को पुजारी बनाकर देवी की पुजा करते है। कोदई माता गाँव अलवा, मण्डवा, डिलमिली, ढोढरेपाल, मावलीभाटा गाँव की सीमा में बैठी हुई है। माता की देवी पुजा बाजार करते समय सभी गाँव के देवी-देवताओं को लाया जाता है और वहां पर भी देवी बाजार होते समय ले जाया जाता है। माता की पुजा में नारियल, मुर्गी, बतक, बकरा, सुअर की बली चढ़ाया जाता है । माता के पास श्रद्धालुओं के द्वारा मन्नत मांगा जाता है।

माता की श्रृंगार : चुनरी, मुकुट, पामल, क्षतर, डोली, बैरक, मोर पंख, की झंडा इत्यादि है। गाँव में सुख-शान्ति रहने के लिए माता को मन्नत मांगा जाता है। गाँव में प्रथम त्यौहार हरियाली के दिन से माता की प्रथम पुजा शुरू होती है।
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