ग्राम कामानार में जलनी मातागुड़ी Chhattisgarh Mata hinglaj mata की उत्पत्ति हुई जिसमें पत्थर की मूर्ति से ग्रामीण पूजा करना शुरू किये जिसमें गांव वाले के विश्वास के फलस्वरूप पैरा का लाड़ी बनाकर प्रकृति पूजा के रूप में संचालित हो रहा था तभी गांव वाले के विश्वास के रूप में आमूस त्यौहार, धान नया जतरा, दिआरी जतरा (चाउर धोनी के रूप में) जतरा त्यौहार बनाया जाता है।
इसी गुड़ी के आर्शीवाद से परगनीया छतर जगदलपुर दशहरा में सम्मिलित होने दशहरा जाती है तथा गांव के पटेल, पुजारी, कोटवार, कावड़िया आदि के साथ जाकर आदि के साथ जाकर आते हैं इस गांव के देवी के साथ पूर्वजों के रिश्ता चुरोबाई, बंजारीनबाई, सकीभाई-बहन लोग साहू भाई के रूप में संबंध हैं जो कि निम्न गांव हे कोटमसर, नागलसर, नवागुड़ा, बिरनपाल, केशापुर, चिंगपाल, लेन्ड्रा, भाटागुड़ा, नेगानार, मंगनार, कोयपाल, राजूर, चिड़पाल, चितापुर, तिरथगढ़, मंगलपुर, किन्दरवाड़ा जो कि १ वर्ष में मेला मंडई में उस गांव के लोग को ग्रामवासी निमंत्रण देकर बुलाकर आना-जाना होता है। इस जलनी माता का नाम हर शनिवार एवं मंगलवार को पूजा होता है। किसी प्रकार की अनहोनी होने पर गांव के पुजारी की सपना में प्रगट होकर माताजी अवगत कराती है। हर शनिवार और मंगलवार को माताजी का सेवा कार्य होता है एवं हर साल मेला के रूप में मनाया जाता है। गांव वाले के जनसहयोग से पत्थर का मूर्ति बनाया गया एवं देवगुड़ी को भी गांव वाले के द्वारा बनाया गया।
Chhattisgarh Mata को भेंट
व्यक्तिगत रूप से किसी-किसी व्यक्ति का मनोकामना पूर्ण होने से किसी व्यक्ति के द्वारा बकरा, कबुतर, मूर्गी एवं देवी में चड़ाने वाला किसी प्रकार का वस्त्र, औजार आदि चड़ाया जाता है। जो कि सदियों से चली आ रही है।
माता जलनी के आर्शीवाद से इस गांव में गुरूमाल के रूप में हा सितम्बर से मार्च तक रात्रिकालीन चौपाल के रूप में हर दिन रात्रि में ३ घंटा चलता है जो कि देवी उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन किया जाता है। एवं होली में अग्नि दाह के रूप में इसका सम्पन किया जाता है।
समापन के दिन चारों दिशाओं के सगे संबंधियों एवं देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। तथा त्यौहार के रूप में २ दिन तक हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसमें आवश्यक सामग्रीयों का पूरा राशि व्यय जनसहयोग द्वारा किया जाता है।
Chhattisgarh Mata पुजारीयों
पुजारीयों के द्वारा बताया गया कि, ग्राम ढोढरेपाल से कमल पात्र / जयदेव पात्र के द्वारा ग्राम डिलमिली में ले जाकर गांव विस्थापित किया गया, ग्राम डिलमिली में पुर्वजों के द्वारा कोटगुड़ीन माता को गांव स्थापना कर गांव में बैठाया गया तब से गांव में मालगुजार के परिवार पुजारी काम करते थे, सुअर, बकरा का बली देने के करण, मुरिया जाति के लोगों को पुजारी के लिये ग्रामीण द्वारा बनाया गया, गांव में कोटगुड़ीन माता, प्रथम पुजारी गोजु मृत्यु के बाद स्व. श्री सरादु को पुजारी बनाया गया, सरादु मृत्यु होने के बाद अभी वर्तमान में श्री जगराम कश्यप कोटगुड़ीन माता पुजारी, व आमाबुदीन माता श्री समलू कश्यप को पुजारी बनाया गया तब से गांव में कोटगुड़ीन माता एवं आमाबुदीन माता की पुजा अर्चना पुजारियों के द्वारा किया जाता है।
गांव में हर वर्ष मेला, जात्रा का आयोजन ग्रामीण द्वारा किया जाता है। कोटगुड़ीन माता के बाजार पारा में मेला में फुलमाला धुप दिप, जलाकर ग्राम के पुजारी पुजा अर्चना करते हैं, मेला में डान्ड माटी को मुर्गा, बकरा, सुअर अन्य दिये जाते हैं। मेला के दुसरा दिन आमाबुदीन मातागुड़ी में जात्रा में बकरा, मुर्गा, सुअर अण्डा आदि भेंटकर बली देते हैं। और ग्रामीण आमाबुदीन माता देवी को मन्नत के अनुसार बकरा, सुअर, मुर्गा, महुआ दारू भेंट स्वरूप करते हैं।
This Website Designed by Visu Web Agency
गांव के बुजुर्ग एवं पुजारी के कथन के अनुसार गांव में श्री गोजू सिराह राजूर गांव से आकर चिड़पाल में पहली बार देवी चढ़ा, देवी चढ़ने पर देवी बताया कि चितापुर के बामनी भाटा (रानीकरपन) से अपनी शरीर देवी शक्ति से हिंगलाजीन माता का शीला गांव लाया और श्री समदू पिता बुदु के मरान (भूमि) में | स्थापित करने को कहा एवं समदू को पुजारी का दर्जा दिया। गांव का पहला पुजारी बना। उसके बाद गांव परिवार झोपड़ी बनाकर पुजारी परिवार रहने लगा, उसे अन्य परिवार एक-एक रहने लगे। परन्तु पुजा-पाठ देवी भर्जी के बाद भी गांव परिवार छोड़कर जाते थे। क्योंकि देवी द्वारा रात को सांप, बिच्छु, शेर (बाघ) घर परिवार में दिखाई देते थे, एवं वर्ष बाद गांव लोग एवं पुजारी एवं सियान लोगों के द्वारा समझौता किया गया, कि गर्भवती महिला के स्थान पर कारी गाय काका मेड़ा, बकरा, मुर्गा, बत्तख, देने का प्रस्ताव पर सहमति हुआ। उसके दो साल बाद गांव पूनः बैठ गया । बली प्रति वर्ष न देकर सात साल में एक बार मेला में बली दिया जाता है। इस हिंगलाजीन माता का रिश्ता राजूर की माता जलनी, कामानार की जलनी माता, चितापुर की कानी ढोकरी माता है। एवं गावं चिड़पाल पैरी भाई कि रिश्ता है । इस देवगुड़ी में हर तीन साल में बाजार-मेला का आयोजन किया जाता है।
Chhattisgarh Mata story, chhattisgarh hinglaj mata, hinglaj mata ki kahani, Chhattisgarh Mata