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वक्त गुरु बाबा उमाकान्त महाराज ने बताया दुनिया के कामों में कामयाब होने और महापुण्य लेने का तरीका…

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वक्ता गुरु बाबा उमाकांत महाराज ने बताया दुनिया के सफल और महापुण्य प्राप्त करने का तरीका

इंसान के शरीर में ऐसी दिखाई देती है भगवान फिल्म नहीं, उनकी शक्तियां इस शरीर में आती हैं

एटा. परम संत बाबा उमाकांत महाराज ने सत्संग में बताया कि इस समय अधिक से अधिक लोगों को शाकाहारी, सदाचारी, नशामुक्त और ईश्वरवादी बनाया जाए, नए लोगों को नामदान दिया जाए, उन्हें निरंतर सुमिरन, ध्यान और भजन का सही तरीका सिखाया जाए। यह सबसे बड़ा पुण्य का काम है।

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अगर यही काम लोग कर ले गए तो इस दुनिया में काम करना आसान हो जाएगा। गुरु की दया होगी, प्रभु की दया होगी। आप जिस काम के लिए दौड़ते हो, जो भी काम हाथ से करता हो और सफल नहीं होता हो, जिसमें आप अपना धन भी देते हो सफल और नहीं होता हो, जिसमें आपको व्यावसायिक बैठकें शामिल होती हैं। उन्हें आपको पुण्य मिल जाता है। आप यह बात समझ लीजिए कि जैसे जीवात्मा को खिलाना पुण्य का काम होता है, वैसे ही जीवात्मा को खिलाना का महापुण्य होता है।

गुरु की महिमा-गरिमा को समझकर गुरु की दया लेनी चाहिए

भगवान इस संसार में मनुष्य के शरीर में ही रहते हैं। जिस वेस में आदमी रहते हैं उसी वेस में भगवान रहते हैं, जहां विश्राम में परेशानी नहीं होती। जब भगवान की शक्तियाँ चलती हैं तब वह काम करता है जो भगवान जैसा काम करता है वह वैसा ही काम करता है। वह दुआ-आशीर्वाद दे देते हैं, अंदर-बाहर से दया दे देते हैं। जिनको संत कहा गया है, जिन्हें महात्मा कहा गया है, जैसे उनके गुरु महाराज थे वैसे ही वे भगवान यहां इस दुनिया-संसार में ही रहते हैं और कर्मों को कटवाने का तरीका जानते हैं। नहीं तो इस शरीर का समय समाप्त हो रहा है। दिन और रात रूपी चूहे उम्र को काट कर ख़त्म कर रहे हैं। अगर तो दुख झेलो और जख्म तो सुख। चाहो तो अपने जीवात्मा को नरक और चौरासी से बचाकर अपने घर, अपने वतन लाओ दो।

अन्वेषक में हुई जीव हत्या का पाप कैसे होती है माफ़ी?

किसी लकड़ी के अंदर कीड़ा था और जला दिया गया और वह मर गया तो वह व्यवसाय में चला गया। ये बच्चियां जमीन की लिपाई करती हैं, झाड़ू-पोंछा लगाती हैं, ऐसे भी छोटे-छोटे कृषक होते हैं जो मर जाते हैं, खत्म हो जाते हैं। जीव हत्या का पाप लगता है लेकिन वह क्षमा योग्य होता है। कोई भूखा-प्यासा आ जाए, एक रोटी खिलाए से, फिर पानी पिलाने से, सत्संगियों से सत्संग की बातें करने से, जिससे भाव-भक्ति मजबूत हो, जिससे उसका ध्यान, भजन और सुमिरन की शक्ति आ जाए। तो यह दोनों पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं। परन्तु अपने हाथ से, आंख से जो काम करता है वह पाप करता है। इसे काटने के लिए, पूरे गुरु की दया लेकर, नित्य सुमिरन, ध्यान और भजन करते हैं, शरीर से भी सेवा करनी होती है।





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