जयगुरुदेव नाम समर्थ प्रभु का नाम, शाकाहारी, चरित्रवान और नशामुक्ति के लिए है
पहले के समय की बजाय इस समय की साधना बिल्कुल सरल हो गई है
मज़हब। परम संत बाबा उमाकान्त महाराज ने मशिन आश्रम पर दिए गए सत्संग में बताया है कि सात सौ वर्षों से संतो ने साधना की यह विधि सरल की है। अब सरल-करते इस समय यह बिल्कुल सरल हो गया है। आगे चलकर और भी आसान करना। जैसे गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव महाराज) पहले कुछ ही लोगों को नामदान देते थे, बाकी को सत्संग सुनाते थे। कहते थे सत्संग सुनो, इसका मतलब समझो, नहीं तो नामदान तो ले लोगे और करोगे नहीं, और जब नहीं करोगे तो तुम कुछ पाओगे भी नहीं। जब तुमको संभव नहीं तब विश्वास हटेगा।
इसलिए पहले सत्संग सुनवते थे, तब उसके बाद नामदान देते थे। क्योंकि संतो के पास तरह-तरह के जीव आते हैं, तरह-तरह के जीव आते हैं। कुछ जीव ऐसे होते हैं जो स्वर्ग और बैकुंठ या ऊपरी लोकों के होते हैं।
“गुरु बिन भव निधि तराई न कोई।”
जो बिरंचि संसहार सम होई।।”
इसी तरह “जयगुरुदेव” नाम से कई स्याह को बीमारी और सिद्धांत से चमत्कार मिला। बहुत से लोगों ने मुसीबत के समय इस नाम की परीक्षा ली और इस “जयगुरुदेव” नाम का उल्लेख किया। पूज्य महाराज जी ने कहा था कि इस बीमारी और कष्टों में आराम देने वाले का नाम “जयगुरुदेव” है, जिसका नाम ध्वनि, कोई भी शाकाहारी, सदाचारी, नशामुक्त व्यक्ति अच्छा व्यवहार से रोज सुबह-शाम बोलेगा और अपने परिवार वालों को बोलवाएगा तो उसे जरूर फ़ायदा होगा।
गुरु ही देवता होते हैं
गुरु कौन होते हैं? क्या होते हैं? इसका क्या मतलब होता है? ये बात लोग समझ नहीं पाते। लेकिन दिव्य दर्शन खुलने पर जब गुरु के रूप में अंतरात्मा के दर्शन होते हैं, तब पूर्ण रूप में जीव का विश्वास होता है। जीव अपने अंतर्ज्ञान में देखता है कि गुरु ही शक्ति है, शक्ति है, जो सारे संसार को चला रहा है। जहां पर कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता है, जो लोक-परलोक की सभी नीड्स को देने की क्षमता रखता है। और अगर गुरु खुश हो जाए तो प्रारब्ध में भी परिवर्तन कर देते हैं। गुरु बदले में कुछ नहीं माँगते। यदि कुछ भी लेते हैं, तो वह जीव के पाप कर्म और बुराइयाँ हैं।
“जयगुरुदेव” नाम का सही अर्थ
पूज्य महाराज ने जयगुरुदेव नाम के बारे में बताते हुए बताया कि ‘जयगुरुदेव’ नाम बाबा जयगुरुदेव महाराज (परम संत तुलसीदास महाराज) ने जगाया था। ‘जय’ का मतलब होता है जयमान अर्थात जो हमेशा रहता है, क्योंकि ‘गुरु’ हमेशा रहते हैं, इसलिए हर युग में गुरु नाम के पीछे ‘जय’ का इस्तेमाल होता है और गुरु नाम के पीछे ‘देव’ और ‘देव’ का मतलब होता है। वाला, देवता। तो गुरु ही सात देवता होते हैं और गुरु जब जाते हैं तो हार नहीं मानते। कहा है ना-
“धरणी जहां लौं देखो, तहां लौं सबै भिखारी।
दाता केवल सतगुरु, देत न माने हार।”
तो ऐसे ही जयगुरुदेव नाम से बाबा ने जगाया इस वक्त का जागृत नाम है और इसलिए जो जयगुरुदेव नाम से उस प्रभु को याद करता है, प्रभु उसे बुलाते हैं। बहुत से लोगों ने इस नाम की परीक्षा ली और जयगुरुदेव नाम का फायदा भी उठाया।